Thursday, January 27, 2011

सुर बनकर विश्राम


पं भीमसेन जोशी जी को अर्पित काव्यांजलि
गता है मेरा मन
राग बहार
तुम्हारे मृत्यु-शोक मै भी
तुम्हे याद करके

उत्सवपूर्ण थी राग बहार की बंदिश
( कालियान्न संग करना रंगरली रे )
और उत्सव ही था तुम्हारा होना
हमारे लिए
और बड़ी अजीब सी बात है
यह भी तो
की रोक नहीं पा रहा है उत्सव
खुद को होने से
तुम्हारे मृत्यु-शोक मै भी

फ़िलहाल जो हो चूका हे
सदा के लिए मौन
उस कंठ की पुकार जगती हे
आज
भी
हमारे भीतर सोए नक्षत्रो को

और अब जबकी
हो चुकी हे फीकी
चमक देह की
और
हो चूका है उत्थान साँझ का
और देखो हो रहा हे
आगमन
सितारों का
अंतरिक्ष मै अनंत तक
इन्ही तारो के बिच से कही
सुनाई रही हे एक लहराती हुई
तान

मै देख सकता हु ,
वह अद्भुत तारा जा रहा हे देखो
अपनी अलबेली आवाज़ मै गाता हुवा
''बजे सरगम हर तरफ से सुर बनकर विश्राम ''

Saturday, January 15, 2011

विन्सेंट वान गौघ : प्रेम-रंगों का हठयोगी


''मेश्यो वन गौघ ! जागने का समय हो गया है !'
सोते हुवे भी विन्सेंट जेसे उर्सुला की आवाज़ का इंतज़ार कर रहा था ।''
यह कोण सी चीज़ थी , कांसा तत्त्व जो आदमी को नींद मे भी किसी की पुकार काइ लिए चेतन बने रखता है ... यह तो प्रेम है ! गी हाँ , विन्सेंट को प्यार हो गया था ।
इसके बाद प्रेम विन्सेंट से हर जगह टकराता हरा ...और विन्सेंट प्रेम-चोट को बार-बार सहता होवा अपने रंगों को केनवास पर तराशता रहा , प्रेम उसके रंगों के लीये प्रसाद था और इन दोनों का समांवेश करके विन्सेंट नेदुनिया के सबसे खुबसूरत सूरजमुखी न्बनाये , ऐसे सूरजमुखी जो अज भी खिले-खिले लगते है और निश्चित तोर पर उनमे वह अभ अज भी अंकित है जिसे विन्सेंट ने किसी समय मै अपने प्रेमपूर्ण ह्रदय मै महसूस किया होगा ।

''उर्सुला '' उर्सुला लेयर वह नाम है जिसने विन्सेंट को पहली बार प्यार के उपवनमै प्रवेश कराया , यह बात अलग है की प्रेम एकतरफा था । लेकिन पहला प्यार व्यक्ति के पुरे अस्तित्व पर .उसके व्यक्तित्व पर और यहाँ तक की देनिक क्रियाओ पर भी एक गहरा प्रभाव डालता है ।

यह लस्ट फॉर लाइफ का पहला अद्द्याय है और पहले अद्दयायकी पहली पांति मै विन्सेंट को प्रेम मे दर्शाया गया है जबकी इसी अद्य्याय के अंत मे विन्सेंट हिज्र का बाराती बन जाता है ।

उर्सुला उसका प्रेम प्रस्ताव ठुक्रदेती है , और फिर क्या ! बिछोह के गीतों की शुरुवात होती है । बिछोह प्रेम का अक बड़ा अद्भुत रूप है , और यह हिज्र विन्सेंट के गिवन मे मिल का पत्थर साबित हुवा जबकि उसका जीवन, उसकी कला इस पथर को साथ लेकर बहती रही और उसने इसी बिछोह से सबसे ज्यादा सिखा ।


अन्तोन माव और विन्सेंटके संवाद का एक छोटा सा अंश :-


विन्सेंट: मैंने एक कलाकार की तरह काम करने, सोने और खाने के सिवा कोई काम नहीं किया है आप इसे दुष्टता कहते है।
माव: तुम खुदको कलाकार कहते हो
विन्सेंट: हाँ
माव: क्या मखोल है तुमने जिंदगी मी एक चित्र भी नहीं बेचा
विन्सेंट: क्या मतलब होता है कलाकार होने का -- बेचना ? मे समझता था की इसका मतलब बिना कुछ पाए लगातार खोजते रहना होता हैं , मुझे पता है के जब मे कह रहा होता हूँ की मे एक कलाकार हु तब मे कहरह होता हु की मे खोज रहा हु ....
एक कलाकार की मूलतः खोज क्या होती हैं, वह चीज़ जिसे वह कला और प्रेम मे खोजता है ? कह नहीं सकते परन्तु कला के द्वारा उपजा खोज का भाव कलाकार को एक अपरीचित मार्ग का मानचित्र प्रदान करता है जिसके द्वारा एक कलाकार, एक प्रेमी, एक तपस्वी ऐसे तट पर पहुंचता है जिसे वह अपनी धरती, अपनी ही दुनिया कह सकता है ।
और विन्सेंट तो खुद मे यह तीनो था । आर्लेस का तपता हुवा सूर्य इस बात का गवाह है की वह कलाकार, एक प्रेमी तो था ही सबसे महत्वपूर्ण वह एक तपस्वी था ...एक कला तपस्वी।

लेकिन क्या एक आदमी को उसकी तपस्या का फल मिलता है ?क्या एक कलाकृति कलाकार की तपस्या का फल होती है ? पता नहीं लेकिन कलाकृति जबतक कलाकार को संतोष नहीं देती तब्तात यह उसका त्रास ही बनी रहती है । परन्तु सवाल यह है की व्न्सेंत के लिए उसकी कला संतोषजनक थी या नहीं ?
वह लन्दन मै रहा , बोरिनाज़ गया , द हेग मै जा बसा, ... आर्लेस ..... नुअनेन... । वह आर्ट गेलेरी मै कार्यरत रहा , बोरिनाज़ मै पादरी बनकर रहा वहा के गरीब लोगो की सेवा की , शिक्षक बना और सिर्फ रहने और खाने की सुविधाओ के लिए कम किया । पहली बार उसने बोरिनाज़ मै कोयले के टुकडो से स्केच बनाये और उसे पता लगा की एक ही कम उसे संतोष ददे सकता है ! वह काम हे चित्रकारी ।
चित्रकारी के अल्वा वह बाकि काम-धन्दो से वह कटता गया उन कामो से उसे तनिक भी संतोष नहीं था और वह निश्चित तोर पर जन गया था की संतोष हिउ आदमी की आखरी शरण है । उसने कला गेलेरियो काम किया था और उसे पता था की वह कितना घटिया मॉल बेच रहा हे , उर्सुला के अलगाव के बाद वह गुपिल्स आर्ट गेलेरी से बिना बताये ही चला गया उसके बाद उसने दार्द्रेख्त मै मै ब्लुसे एंड बरम की किताबो की दुकान पर क्लार्ल की नोकरी की
वह वहा चार माह रहा इसके बाद उसने एक अद्याप; की नोकरी की इस काम के बदले उसे रहने और खाने की व्यवस्था कराइ गई थी इसके बाद उसका झुकाव एइवन्जेलिस्त बनकर इस्वर की सेवा करने की और हुवा और वह लन्दन से अम्स्तार्दोम चला आया और वहा से बोरिनाज़।
बोरिनाज़-- जहा से विन्सेंट का असली सफ़र शुरू होता हे । यही वह जगाह थी जहा से विन्सेंट ने अपना सबकुछ रंगों के हवाले करने की ठान ली थी ।
विन्सेंट के समकालीनो मे एकमात्र विन्सेंट ने ही सबसे अधिक चित्रों की रचना की और चित्रकारी मे अपनी ही तरह की नई तकनीक लाय ''पोस्ट इम्प्रेशनिज्म''

विन्सेंट ने अपने जीवन के लिए जिन उपकरणों और साधनों का चुनाव किया `वह उसे एक साहसी व्यक्ति की नियति भी देते हे --
एक ''साहसी व्यक्ति'' कक उदघोश इस लिए क्योकि एक साहसी व्यक्ति के पास पाने को भाले कुछ हो न हो लेकिन खोने के लिए सदा सबकुश होता हे -- विन्सेंट ने जीवनभर खोया हे ...लेकिन फिरभी उसने जो पाया हे वह सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान है , उसके जीवन का ग्राफ भले ही संकुचित व निम्न हो परन्तु उसकी कला-दृष्टी ने जीवन की हर संकुचन को विपरीत ही चित्रित किया है ठीक अपने बनाये चिड के पेड़ो की तरह , हमेशा एक महान उचाई की और उठते हुवे ।
वह इतने महान इसलिए भी हे क्योकि वह अपनी चित्रकला कई नई चीज़े लाऐ उन्होंने चित्रकला के निजी दर्शन को इजाद किया जो की उनके पत्रों और जीवन के बाबत हमें पटक लगता है । उसने इतन मे सुरुवाती स्केच बनाये और गलतियों को अपना गुरु बनाया ,वह निरंतर रेखाओ पर कम करता रहा विन्सेंट को शुरुवाती स्केच बनाते समय कोई नेसर्गिक प्रतिभा नही दिखी , वह इन्हें बनाने के लिए मशक्कत कारता रहा , उसने अपने पिता से कहा : ''प्रकुति हमेशा कलाकार के विद्रोह से शुरुवात करती हे , चीजों की जड़ मै प्रकुति और कलाकार सहमत होते है वर्षो की म्हणत और मशक्कत के बाद शायद प्रकृति मित्रतापूर्ण और सहायक बन जाती है पर अंत मै सबसे बुरा कम भी सबसे अच्छा काम मै तब्दील हो जाता हे और खुद को न्यायपूर्वक ठहरता हे । ''
उसने एक दोयम दर्जे की कलाकृति बनाने गंभीर साहित्य की समझ होना ज़रूरी जाना और उदघोश किया
''बिना हड्डियों और मांसपेशियों बारे में जाने मै किसी आकृति को नहीं बना सकता , मै एक व्यक्ति सर जबतक नहीं बना सकता जबतक मुझे पता न हो की उसके मन नम में और अत्त्मा में क्या चल रहा है , जीवन के चित्र बनाने के लिए अंतर्रचना को जानने के साथ ही यह भी पता होना ज़रूरी हे की लोग केसे सोचते और महसूस करते है
--उस दुनिया के बारे मै गिसमे वह रहते है , एक ऐसा कलाकार जो सिर्फ अपनी कला की बारीकियो को जनता है बिलकुल सतही कलाकार बनेगा ''
लेकिन क्या किताबो को पड़कर कोई ठीक पेंटिंग बना सकता हैं ? '' ऐसा तब ही होगा जब एक कलाकार किताब में लिखी बातो को क्रियान्वित कर सके '' फिरभी विन्सेंट यह जनता था की अब्ब्यास को किताबो के साथ नहीं ख़रीदा जा सकता ।
आप उसका पूरा काम देख सकते है वह सिर्फ अभ्यास के दोरान का काम है । वह भी सारा का सारा । बोरिनाज़ से लेकर सेंट रेमी तक उसकी यात्रा अभ्यास की यात्रा है । उसने सच में अपना जीवन एक साधक, एक तपस्वी , एक हठ योगी की तरह व्यतीत किया है । उसने कला में उथलेपन को दरकिनार किया और कला की बारीकियों से ज्यादा उसने जीवन की बारीकियों पर गोर किया । निश्चित ही विन्सेंट की कला जीवन को खोजती कला है ...(समाप्त)