Thursday, January 27, 2011

सुर बनकर विश्राम


पं भीमसेन जोशी जी को अर्पित काव्यांजलि
गता है मेरा मन
राग बहार
तुम्हारे मृत्यु-शोक मै भी
तुम्हे याद करके

उत्सवपूर्ण थी राग बहार की बंदिश
( कालियान्न संग करना रंगरली रे )
और उत्सव ही था तुम्हारा होना
हमारे लिए
और बड़ी अजीब सी बात है
यह भी तो
की रोक नहीं पा रहा है उत्सव
खुद को होने से
तुम्हारे मृत्यु-शोक मै भी

फ़िलहाल जो हो चूका हे
सदा के लिए मौन
उस कंठ की पुकार जगती हे
आज
भी
हमारे भीतर सोए नक्षत्रो को

और अब जबकी
हो चुकी हे फीकी
चमक देह की
और
हो चूका है उत्थान साँझ का
और देखो हो रहा हे
आगमन
सितारों का
अंतरिक्ष मै अनंत तक
इन्ही तारो के बिच से कही
सुनाई रही हे एक लहराती हुई
तान

मै देख सकता हु ,
वह अद्भुत तारा जा रहा हे देखो
अपनी अलबेली आवाज़ मै गाता हुवा
''बजे सरगम हर तरफ से सुर बनकर विश्राम ''

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