Sunday, February 27, 2011

''इन द पिनल कालोनी'' के बाबत




फ्रान्ज़ काफ्का
और
खुद को भेदता हुवा जाता है उसका लेखन
आत्मा के घूप्प अंधियारे तलो तक



''फ्रान्ज़ काफ्का'' मुझे कई बार यह नाम एक किवदंती-सा महसूस होता है, उसका चरित्र ही कुछ ऐसा है मनो वह प्राचीन रोम का कोई देवता हो... मनुष्य के भीतर अकारण ही व्याप्त उस व्यथा ,त्रासऔर यातनाओ का देवता
''काफ्का'' नाम के आह्वाहन मात्र से ही संपूर्ण मानवता के यातनाओ के भावर साक्षात् हो उठते है, उसका पीडाओ से भरा स्याह चेहरा नरख की ज्वाला के समान दहक उठता हे निसंदेह यह एक विलक्षित व्यक्ति का चरित्र-चित्रण है, विलक्षित इसलिए क्योकि काफ्का ने एक मूल्यवान खोज की है वह हे ''व्यक्ति के भीतर व्याप्त वह अज्ञात पीड़ा'', यह पीड़ा सदियों से एक आज्ञात चीज़ रही है और आदमी सदियों से इस यातना को जीता है मगर इसे समझ नहीं पा रहे है , गोया अपनी यातनाओ को देखते हुवे भी आदमी उसके प्रति अँधा बना रहता है और वह अकारण ही अँधा नहीं महज़ इसलिए क्योंकि वह कुछ कर नहीं पा रहा है अपने अंधेपन के खिलाफ लेकीन यहाँ सवाल उठता है की आखिर आदमी इतना पीड़ित हे क्यों ? क्योकि वह नहीं जनता कि आखिर वह यहाँ क्यों है । फ्योदोर दोस्तोवस्की भी एक जगह ऐसा ही सवाल उठाते है -:कि ''इश्वर ने आखिर हमें बनाया ही क्यों '' इसी सवाल का जवाब आदमी सदियों से खोज रहा है नीत्शे ने इस पीड़ा का बेहद गहरा द्य किया , इसे बेहद करीब से जाना-समझा और बदले कि भावना को लेकर उसने इश्वर कि हत्या कर दी, खंड-खंड कर दिया मानव चेतना मै बसी इश्वर कि प्रतिमा को और इसके बदले महामानवीय ज्योति को स्थापित किया , वाही दोस्तोवस्की ने ''रस्कोलनिकव''(क्राइम एंड पनिशमेंट) जेसे किरदार को जन्म दिया , लेकीन रस्कोल्निकाव अपनी मृत्यु तक इस पीड़ा को समझ नहीं पाया
तो एक महान कथाकार का यह तरीका होता है, सही मायनो मै एक थ्योरी जिससे जवाब कि ताकत के साथ ही सवाल कि गरिमा को भी समझा जा सके , एक किरदार आखिरकार अपने कथाकार कि गुत्थी को सुलझाने कि शमता और ताकत रखता है इस तरह कि कृति एक महान कथाकार का अत्त्म-मंथन होती है , जहा कभी-कभी तो उसके हाथ कुछ नहीं लगता और किरदार-कथाकार एक नेराश्च्य शरण को चले जाते है और कभी तो संभावनाओ के वृक्ष पर फल असंख्य मात्र मै फलीभूत होते हे पूर्वी दर्शन मे कई ऐसी कई कृतिया मिल के पत्थर सी स्थापित है
परन्तु पश्चिम मे नीत्शे और दोस्तोवस्की की तरह काफ्का भी अन्धकार मे बुझा हुवा दीपक लिए घूमते है (लेकीन बुझा दीपक आदमी कि नियति नहीं )लेकीन यह क्या ! आखिर काफ्का को वह मशीन मिल ही जाती है ? जो आदमी के जन्म से ही आदमी कि छाती पर अपने नुकीले पंजो के भर संहित उसे एक अनजाने दंड की सजा देती है ।
यही वह कलपुर्जा जो काफ्का को इतना महान बनता है। यह मशीन है काफ्का की लम्बी कहानी '' in the penal colony'' की । कहानी को पड़कर हमें यह ज्ञात होता हे की अंत: आदमी की कला उसके छुपे रहस्यों को साक्षात्य प्रदान करती है । यह बात पूरी तरह स्पष्टता के साथ तो नहीं कह सकता लेकिन कहानी लिख चुकने के बाद ही या कहानी लिखते हुवे ही काफ्का को इसकी भीषणता का आभास हुवा होगा । इसलिए काफक का साहित्य मात्र रोचक व मनोरंजक न होकर एक गहरा आत्ममंथन हे।

Friday, February 25, 2011

Friday, February 18, 2011

कवी-मित्र नीलोत्पल के लिए




मित्र को पत्र-कविता


पतझड़ की तरह पुरे जंगल में,
बिखरी हुई
तमाम पत्तियों की तरह ,
तुम्हारी तरह ! काश
मेरे दोस्त
मै हर सित्म बिखर सकता ! मेरे दोस्त
लेकिन यह मेरे उदास होने का समय हे
यह समय ही कुछ ऐसा हे
और निसंदेह परिस्थितिया भी...
लेकिन फिर भी में दुखी नहीं हु
उदास हु ज़रा
कुछ शनो से कुछ शनो तक
लेकिन मुझे पता नहीं था
की यह शन इतना विराट होगा
फिर भी
निषेध की सर्दी मेरी तबियत नहीं
मै आशाओ के उनी वस्त्र पहनता हूँ
............................
एक अंधियारे समय मे जीता हूँ मे
जो मुझे सूर्योदय के मूल्यों को समझाता है
ओर समझाता हे चीजों को
और चीजों के वार्तुल ओर कोस्ठ्को के अंतर बाह्य दायरे ...
जो कई तरह की नविन प्रस्फुटन से भरपूर हे
मुझे लगता हे
इसी समझ के किनारे हम मिलेगे एक दिन
जिंदादिल (क्या शब्द कहा था तुमने )
बयारो के स्वागत में बिखरे-बिखरे

Sunday, February 13, 2011

लोर्का के गीत : अनुवाद विष्णु खरे




मालागुये
मोत शराबख़ाने में
आती-जाती है

काले घोड़े
और फ़रेबी लोग
गिटार के गहरे रास्तों
के बराबर चलते हैं

और समन्दर के किनारे
बुखार में डूबी गँठीली झाड़ियों से
नमक की और औरत के ख़ून की
बू आती है

मौत
आती और जाती है
आती और जाती है
मौत
शराबख़ाने की !

मालागुए-या= एक विशेष प्रकार के स्पानी नृत्य और गीत का नाम

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे-या / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का



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नए गीत / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का

तीसरा पहर कहता है-
मैं छाया के लिए प्यासा हूँ
चांद कहता है-
मुझे तारों की प्यास है
बिल्लौर की तरह साफ़ झरना होंठ मांगता है
और हवा चाहती है आहें

मैं प्यासा हूँ ख़ुशबू और हँसी का
मैं प्यासा हूँ चन्द्रमाओं, कुमुदनियों और झुर्रीदार मुहब्बतों से मुक्त
गीतों का

कल का एक ऎसा गीत
जो भविष्य के शान्त जलों में हलचल मचा दे
और उसकी लहरों और कीचड़ को
आशा से भर दे

एक दमकता, इस्पात जैसा ढला गीत
विचार से समृद्ध
पछतावे और पीड़ा से अम्लान
उड़ान भरे सपनों से बेदाग़
एक गीत जो चीज़ों की आत्मा तक
पहुँचता हो
हवाओं की आत्मा तक
एक गीत जो अन्त में अनन्त, दय के
आनन्द में विश्राम करता हो !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु ख

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चांद उगता है / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का

जब चांद उगता है
घंटियाँ मंद पड़कर ग़ायब हो जाती हैं
और दुर्गम रास्ते नज़र आते हैं

जब चांद उगता है
समन्दर पृथ्वी को ढक लेता है
और हृदय अनन्त में
एक टापू की तरह लगता है

पूरे चांद के नीचे
कोई नारंगी नहीं खाता
वह वक़्त हरे और बर्फ़ीले फल
खाने का होता है

जब एक ही जैसे
सौ चेहरों वाला चांद उगता है
तो जेब में पड़े चांदी के सिक्के
सिसकते हैं !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे
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अलविदा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का


अगर मैं मरूँ
तो छज्जा खुला छोड़ देना

बच्चा नारंगी खा रहा है
(छज्जे से मैं उसे देखता हूँ)

किसान हँसिए से बाली काट रहा है
(छज्जे से मैं उसे सुन रहा हूँ)

अगर मैं मरूँ
तो छज्जा खुला छोड़ देना !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे

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हर गीत


हर गीत
चुप्पी है
प्रेम की

हर तारा
चुप्पी है
समय की

समय की
एक गठान

हर आह
चुप्पी है
चीख़ की !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे
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गुलाब का क़सीदा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का

गुलाब ने सुबह नहीं चाही अपनी डाली पर चिरन्तन
उसने दूसरी चीज़ चाही

गुलाब ने ज्ञान या छाया नहीं चाहे
साँप और स्वप्न की उस सीमा से
दूसरी चीज़ चाही

गुलाब ने गुलाब नहीं चाहा
आकाश में अचल
उसने दूसरी चीज़ चाही !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे
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रोने का क़सीदा / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का
मैंने अपने छज्जे की खिड़की बन्द कर दी है
क्योंकि मैं रोना सुनना नहीं चाहता
लेकिन मटमैली दीवारों के पीछे से रोने के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता

बहुत कम फ़रिश्ते हैं जो गाते हैं
बहुत ही कम कुत्ते हैं जो भौंकते हैं

मेरे हाथ की हथेली में एक हज़ार वायलिन समा जाते हैं

लेकिन रोना एक विशालकाय कुत्ता है
रोना एक विराट फ़रिश्ता है
रोना एक विशाल वायलिन है

आँसू हवा को घोंट देते हैं
और रोने के सिवा कुछ सुनाई नहीं देता !

अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे
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नारंगी के सूखे पेड़ का गीत / फ़ेदेरिको गार्सिया लोर्का


लकड़हारे
मेरी छाया काट
मुझे ख़ुद को फलहीन देखने की यंत्रणा से
मुक्त कर !

मैं दर्पणों से घिरा हुआ क्यों पैदा हुआ ?
दिन मेरी परिक्रमा करता है
और रात अपने हर सितारे में
मेरा अक्स फिर बनाती है

मैं ख़ुद को देखे बग़ैर ज़िन्दा रहना चाहता हूँ

और सपना देखूंगा
कि चींटियाँ और गिद्ध मेरी पत्तियाँ और चिड़ियाँ हैं

लकड़हारे
मेरी छाया काट
मुझे ख़ुद को फलहीन देखने की यंत्रणा से
मुक्त कर !


अंग्रेज़ी से अनुवाद : विष्णु खरे
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Thursday, February 10, 2011

ZORBA THE GREEK (14/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (13/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (12/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (11/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (10/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (9/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (8/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (7/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (6/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (5/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (4/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (3/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (2/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis

ZORBA THE GREEK (1/14) - Mikis Theodorakis, Nikos Kazantzakis