Sunday, March 25, 2012

अनुराग भाई और दोस्तों,
सरे तथाकथित धर्म और धार्मिक लोग इस वाक्य से चुक गए है। जब हरी अनंत है और हरी कथा भी तो हरी और हरी कथा परस्पर कही भी मोजूद हो सकते है। वोह कथा गीता मे मोजूद हो सकती है, कुरान मे, बाईबल मे, धम्पद मे, तोलोस्तोय के वार एंड पिस मे,पुनरुथान मे, अन्ना केरिनिना मे, दोस्तोवस्की के अपराध और दंड मे, काफ्का के मेटामोरफौसीस मे, इन द पेनल कालोनी मे, उन कि लघु कथाओ मे, उन के संवादों मे, उन के पत्रों मे, वान गौघ की जीवनी मे,ओलेनिनिं के प्रेम मे, सूफियों के हिज्र मे, कही भी।

सदर वन्दे

Friday, March 16, 2012

विवेकानंद को युवाओ के प्रतिक के रूप मै देखा जाता है, उन पर पश्चिम बंगाल मै ढेरो किताबे सालाना प्रकाशित होती है, वे एक नास्तिक थे, वे एक सन्यासी भी थे, वे बेहद उन्दा रसोइये भी थे, वे हिन्दूवादियों के पोस्टर बॉय भी है, विवेकानंद का व्यक्तित्व सदा ही प्रासंगिक रहा है, लेकिन उनमे व्याप्त कवित्त (काव्य तत्व) की चर्चा बहुत कम हुई है
उन की यह कविता यहाँ प्रतुत कर रहा हूँ जिससे हमें यह ज्ञात होता है की किस तरह एक सन्यासी मे भी कविता की धारा विस्तारीत होती है -:

शांति

देखो जो बलात आती है,
वह शक्ति शक्ति नहीं है।
वह प्रकाश प्रकाश नहीं है,
जो अँधेरे के भीतर है,
और न वह छाया, छाया ही है
जो चकाचोंध करने वाले
प्रकाश के साथ है।
वह आनंद है, जो कभी व्यक्त नहीं हुवा
और अनभोगा, गहन दुःख है
अमर जीवन जो, जिया नहीं गया
और अनंत मृत्यु, जिस पर -
किसी को शोक नहीं हुवा।
न दुःख है, न सुख
सत्य वह है,
जो इन्हें मिलाता है।
न रात है, न प्रात
सत्य वह है,
जो इन्हें जोड़ता है।
वह संगीत मे मधुर विराम,
पावन छंद के बिच यति है,
मुखरता के मध्य मोन,
वासनाओ के विस्फोट के बिच
ह्रदय की शांति है।
सुन्दरता वह है जो देखी न जा सके।
प्रेम वह है जो अकेला रहे।
गीत वह है, जो जिए, बिना गाये।
ज्ञान वह है जो कभी जाना न जाए।
जो दो प्राणों के बिच मृत्यु है,
और दो तुफानो के बिच एक स्तब्धता है,
वह शुन्य जहा से सॄश्टि आती है
और जहा वह लौट जाती है ।
वाही अस्रुबिंदु का अवसान होता है,
प्रसन्न रूप को प्रस्फुटित करने को
वाही जीवन का चरम लक्ष है,
और शांति ही एकमात्र शरण है।

Thursday, March 15, 2012

(गीत चतुर्वेदी की कहानी "साहब है रंगरेज़" पड़ने के बाद।)

अभागे है प्रेमी लोग

ओह प्रेम !
तुम एक असीम इन्द्रधनुष हो
असंख्य रंगों वाले,
लेकिन प्रेमी लोग अभागे है।
वह तुम पर चलते-टहलते हुवे भी
स्पर्श कर पते है
तुम्हारे किसी एक रंग को ही।
कभी वे चलते है तुम्हारी लाल पकदंडीयो पर,
कभी वे मिलकर हरी पर होते है साथ साथ ,
और कभी एक पिली पर होता है तो
दूजा काली पर।

अदभूत है यहाँ चलना, यहाँ टहलना,
विस्मय से भरा,
लेकिन प्रेमी लोग कभी न जान पाए
तुम्हारे पूर्ण वुत्त को।


प्रेम मे डुबे संपूर्ण प्रेमी वे है
जो जानते है इन्द्रधनुष होना ।
वे ही चदा पते है परस्पर
अपने हृदयों पर प्रत्यंचा