Tuesday, April 24, 2012
एक लम्बी और शांत गली
मै अँधेरे में चलता हूँ, लडखडाता हूँ
और उठता हूँ, और चलता हूँ बिना देखे शांत पत्थरो
और सूखे पत्तो पर पड़ते है मेरे पैर
कोई मेरे पीछे चल रहा है, पत्थरो,पत्तो पर पेर रखता
मै धीमा चलूँ तो वह धीमा चलता है
मै दोंडू तो वह दोंड़ता है, मै मुड़ता हूँ; कोई नहीं
इन मोड़ पर और और मुड़ते हुवे जो जाते है गली की और
जहा कोई नहीं कटा मेरा इंतज़ार, कोई नहीं करता मेरा पीछा
जहा मै पीछा करता हूँ एक आदमी का जो लडखडाता है
और उठता है और जब देखता है मुझे,कहता है; कोई नहीं --पाज़
मै अँधेरे में चलता हूँ, लडखडाता हूँ
और उठता हूँ, और चलता हूँ बिना देखे शांत पत्थरो
और सूखे पत्तो पर पड़ते है मेरे पैर
कोई मेरे पीछे चल रहा है, पत्थरो,पत्तो पर पेर रखता
मै धीमा चलूँ तो वह धीमा चलता है
मै दोंडू तो वह दोंड़ता है, मै मुड़ता हूँ; कोई नहीं
इन मोड़ पर और और मुड़ते हुवे जो जाते है गली की और
जहा कोई नहीं कटा मेरा इंतज़ार, कोई नहीं करता मेरा पीछा
जहा मै पीछा करता हूँ एक आदमी का जो लडखडाता है
और उठता है और जब देखता है मुझे,कहता है; कोई नहीं --पाज़
Tuesday, April 3, 2012
(निर्मल का उपन्यास पड़ने के बाद)
एक चिथड़ा सुख
चुप,सुलगते बिम्ब, जो बिम्बों से नहीं
छवियों से है।
और उनके बोलते दायरे
जो विस्तृत होकर भी
छोटे संकरे गलियारों से है।
एक चिथड़ा सुख... असमानों का,
उसके बिम्बों का और
बिम्बों के दायरों का।
धुप, छाव और धुंध
है तलाश मै एक दूजे की।
तलाश! बंद मुट्ठी मै सोया स्वप्न।
जिसे जगाना है असंभव
वह स्वप्न बस अपने ही दिवास्वप्न मे
वोह तलाश पूरी करता है।
एक चिथड़ा सुख.....धुप, छाव, और धुंध का।
समय कि सुरंग मै बहते हम
एक दूजे का हाथ थाम कर भी
किन्ही दूसरी दिशाओं मे बहते जाते है
इस सुरंग मे क्यों बहते जाते है हम ?
पता नहीं कहां पहुचते है? लेकिन
कोई खिचता जाता है अन्थो दिशाओ से हमें।
चार से समय
चार से सुख
एक चिथड़ा सुख..... सुबह से शाम...रात से दिन...
एक चिथड़ा सुख
चुप,सुलगते बिम्ब, जो बिम्बों से नहीं
छवियों से है।
और उनके बोलते दायरे
जो विस्तृत होकर भी
छोटे संकरे गलियारों से है।
एक चिथड़ा सुख... असमानों का,
उसके बिम्बों का और
बिम्बों के दायरों का।
धुप, छाव और धुंध
है तलाश मै एक दूजे की।
तलाश! बंद मुट्ठी मै सोया स्वप्न।
जिसे जगाना है असंभव
वह स्वप्न बस अपने ही दिवास्वप्न मे
वोह तलाश पूरी करता है।
एक चिथड़ा सुख.....धुप, छाव, और धुंध का।
समय कि सुरंग मै बहते हम
एक दूजे का हाथ थाम कर भी
किन्ही दूसरी दिशाओं मे बहते जाते है
इस सुरंग मे क्यों बहते जाते है हम ?
पता नहीं कहां पहुचते है? लेकिन
कोई खिचता जाता है अन्थो दिशाओ से हमें।
चार से समय
चार से सुख
एक चिथड़ा सुख..... सुबह से शाम...रात से दिन...
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