मानव मै सुख की भावना निहित है इसलिए न्यायसंगत भी है... तोलोस्तोय के ये शब्द वहा चोट करते है जहा बड़ी का सबसे कमज़ोर औरखास मुहाना है, उसके बाद सारी गठे खुद ब खुद ढीली हो जाती है
एक प्रपात की आगे जाकर दो धराए बनी एक बनी ज़ोरबा दी ग्रीक दूसरी है ज़ोरबा दी बुद्धा
मई मानता हु की मई दूसरी भावना के गदा करीब हु जबकि पहली भावना मुझे मात्र आकर्षित करती है
मुरारी बापू एक प्रवचन ,मे कह रहे थे की पति अपनी पत्नी से प्रेम करता है पत्नी की वजह से नहीं अपमे ही प्रेम निहित है हम उसे क्रीऐट न्बाही कर सकते ज़ोरबा एक ऐसा तत्व है जो मानव मे पहले से है निहित है और हम सब इसलिए ओस्से जुड़े है ओपचारिकता वश हम यह न भी कह सके तो भी हम है .........................zorba
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