Friday, February 18, 2011

कवी-मित्र नीलोत्पल के लिए




मित्र को पत्र-कविता


पतझड़ की तरह पुरे जंगल में,
बिखरी हुई
तमाम पत्तियों की तरह ,
तुम्हारी तरह ! काश
मेरे दोस्त
मै हर सित्म बिखर सकता ! मेरे दोस्त
लेकिन यह मेरे उदास होने का समय हे
यह समय ही कुछ ऐसा हे
और निसंदेह परिस्थितिया भी...
लेकिन फिर भी में दुखी नहीं हु
उदास हु ज़रा
कुछ शनो से कुछ शनो तक
लेकिन मुझे पता नहीं था
की यह शन इतना विराट होगा
फिर भी
निषेध की सर्दी मेरी तबियत नहीं
मै आशाओ के उनी वस्त्र पहनता हूँ
............................
एक अंधियारे समय मे जीता हूँ मे
जो मुझे सूर्योदय के मूल्यों को समझाता है
ओर समझाता हे चीजों को
और चीजों के वार्तुल ओर कोस्ठ्को के अंतर बाह्य दायरे ...
जो कई तरह की नविन प्रस्फुटन से भरपूर हे
मुझे लगता हे
इसी समझ के किनारे हम मिलेगे एक दिन
जिंदादिल (क्या शब्द कहा था तुमने )
बयारो के स्वागत में बिखरे-बिखरे

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