Tuesday, April 24, 2012

एक लम्बी और शांत गली
मै अँधेरे में चलता हूँ, लडखडाता हूँ
और उठता हूँ, और चलता हूँ बिना देखे शांत पत्थरो
और सूखे पत्तो पर पड़ते है मेरे पैर
कोई मेरे पीछे चल रहा है, पत्थरो,पत्तो पर पेर रखता
मै धीमा चलूँ तो वह धीमा चलता है
मै दोंडू तो वह दोंड़ता है, मै मुड़ता हूँ; कोई नहीं
इन मोड़ पर और और मुड़ते हुवे जो जाते है गली की और
जहा कोई नहीं कटा मेरा इंतज़ार, कोई नहीं करता मेरा पीछा
जहा मै पीछा करता हूँ एक आदमी का जो लडखडाता है
और उठता है और जब देखता है मुझे,कहता है; कोई नहीं --पाज़

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