Sunday, August 16, 2009
एक दोस्त के बरसो बाद मिलने पर
मुझे पता न था
की जिंदगी इतनी रंगीन है
जितनी की अमावस की राते होती है
वहा ओझल हे सरे रंग,घुले हुवे है वही कही
अंधकार की सासों मे.
वोह वहा केद है या अज़ाद है मुझे नही पता,
पर मुझे पता है की वो सरे वाही के वही है.इसी तरह
मुझे पता था की ओझल हो तुम भी,
इन्ही रंगों की तरह कही न कही,
पर पता नही था की ये रंग कालिमा की खोह तोडके
इतनी जल्दी खिलकर मुझपर बरस जाएगे
वो स्पेस! तुम्हारे और मेरे मिलने के बिच का
उस तिन मिनटों के स्पेस मे
तुमसे हाथ मिलाना
किसी बिछडे दोस्त से हाथ मिलाना भर ही न था
फकत किसी हसी लम्हे से हाथ मिलाना था
वोह वक्त जिसमे तुम और मे मिले थे
और "तुम्हारी अखो ने मुझे देखा
और यकीं न किया खुदपर"
उस वक्त उस घड़ी को अब मै दिल के हरे कोने मे
ले जाके कही बों दुगा
उस के अंकुर को उगने दुगा, उस के फूलो को मै खिलने दू उगा
उस के उगने के इन्तिज़ार में मै
तुमसे मिलने के इन्तिज़ार मे मै
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