Friday, March 16, 2012

विवेकानंद को युवाओ के प्रतिक के रूप मै देखा जाता है, उन पर पश्चिम बंगाल मै ढेरो किताबे सालाना प्रकाशित होती है, वे एक नास्तिक थे, वे एक सन्यासी भी थे, वे बेहद उन्दा रसोइये भी थे, वे हिन्दूवादियों के पोस्टर बॉय भी है, विवेकानंद का व्यक्तित्व सदा ही प्रासंगिक रहा है, लेकिन उनमे व्याप्त कवित्त (काव्य तत्व) की चर्चा बहुत कम हुई है
उन की यह कविता यहाँ प्रतुत कर रहा हूँ जिससे हमें यह ज्ञात होता है की किस तरह एक सन्यासी मे भी कविता की धारा विस्तारीत होती है -:

शांति

देखो जो बलात आती है,
वह शक्ति शक्ति नहीं है।
वह प्रकाश प्रकाश नहीं है,
जो अँधेरे के भीतर है,
और न वह छाया, छाया ही है
जो चकाचोंध करने वाले
प्रकाश के साथ है।
वह आनंद है, जो कभी व्यक्त नहीं हुवा
और अनभोगा, गहन दुःख है
अमर जीवन जो, जिया नहीं गया
और अनंत मृत्यु, जिस पर -
किसी को शोक नहीं हुवा।
न दुःख है, न सुख
सत्य वह है,
जो इन्हें मिलाता है।
न रात है, न प्रात
सत्य वह है,
जो इन्हें जोड़ता है।
वह संगीत मे मधुर विराम,
पावन छंद के बिच यति है,
मुखरता के मध्य मोन,
वासनाओ के विस्फोट के बिच
ह्रदय की शांति है।
सुन्दरता वह है जो देखी न जा सके।
प्रेम वह है जो अकेला रहे।
गीत वह है, जो जिए, बिना गाये।
ज्ञान वह है जो कभी जाना न जाए।
जो दो प्राणों के बिच मृत्यु है,
और दो तुफानो के बिच एक स्तब्धता है,
वह शुन्य जहा से सॄश्टि आती है
और जहा वह लौट जाती है ।
वाही अस्रुबिंदु का अवसान होता है,
प्रसन्न रूप को प्रस्फुटित करने को
वाही जीवन का चरम लक्ष है,
और शांति ही एकमात्र शरण है।

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