'नदी, पहाड़, फसल, किनारे
बादल, बस्ती, बचपन, बयारे'
यह सब और कुछ नहीं
चहरे है कहानियों मे।
और कथा एक गाँव है।
जिसे लेखक आबाद करता है ,
मिलो पृष्ठ उसमे बसता है
और वहा चिपकता है
कई चेहरे अपने इतिहास के।
वह चेहरे हे जेसे खोखल मे जमा बरसात का पानी,
लेखक की स्याही उसी पानी से बनी है
जबकि मै औ कोंध तुम्हारा पुजारी हूँ
इसलिए मै करता हूँ तुम्हारा आह्वाहन
बार बार, सालों से
क्योंकी मेरी कविता मुझमे कोंध सी प्रकट होती है
शब्दातीत, एक खालिस ध्वनी
सिर्फ एक तडकती गडगडाहट
जिसका कोई नाम नहीं
न ही कोई चेहरा
और कविता मे शब्द होते है
जेसे तेज़ बहते पानी पर बहती कागज़ की नावें
लव
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